पूर्व महानिदेशक, भारतीय तटरक्षक बल
श्री राजेंद्र सिंह एनडीएमए में सदस्य के रूप में नियुक्ति से पूर्व भारतीय तटरक्षक संगठन में 29 फरवरी, 2016 से 30 जून, 2019 तक तैनात थे। देहरादूनवासी महानिदेशक राजेन्द्र सिंह ने भारतीय तटरक्षक में वर्ष 1980 में कार्यभार ग्रहण किया था। इन्होंने अपनी प्राथमिक और उच्च शिक्षा देहरादून और मसूरी से प्राप्त की।
पूर्व में महानिदेशक के तौर पर अपने सेवाकाल में इन्होंने जल और थल में भारतीय तटरक्षककेसभी प्रकार के जहाजों जिसमें अपरोधी नौकाओं,उपतटीय गश्ती पोत,द्रुतगामी गश्ती पोत, अपतटीय गश्ती पोत (ओपीवी) तथा उन्नत अपतटीय गश्ती पोत (एसओपीवी) संबंधी विभिन्न प्रकार के महत्वपूर्ण कमान और स्टाफ नियुक्ति का दायित्व निर्वहन किया। अनेकों समुद्री आर्थिक अपराधियों की गतिविधि जो राष्ट्रहित के विरुद्ध थी,को गिरफ्तार करने के कारण इनको पहचान मिली और 15 अगस्त, 1990 को तटरक्षक मेडल तथा 15 अगस्त, 2007 को राष्ट्रपति तटरक्षक मेडल से इन्हें नवाजा गया। अपने 39 वर्षों की सेवावधि में फ्लैग ऑफिसर के रूप में इन्होंने संगठन के क्षमता निर्माण, श्रमशक्ति और अवसंरचना के विस्तार हेतु प्रशासनिक ढांचा को सुदृढ़ करने की आधारशिला रखी। इस प्रकारतटरक्षक के बहु-कार्य सेवा की छवि विकसित करने में इनकी महती भूमिका रही।
महानिदेशक के रूप में अपनी सेवावधि में इन्होंने दक्षिण एशियाई सहयोग कार्यक्रम के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और मालदीव को ऑयल स्पिल रिस्पांस में सहयोग हेतु राष्ट्रीय सक्षम प्राधिकारी की भूमिका निभाई। साथ ही, राष्ट्रीय समुद्री खोज एवं बचाव बोर्ड तथा राष्ट्रीय ऑयल स्पिल आपदा आपात निर्वाही योजना में दोनों संगठनों के अध्यक्ष भी रहे। राष्ट्रीय अपतटीय सुरक्षा समन्वय समिति के अध्यक्ष के रूप में इन्होंने अपतटीय प्रतिष्ठानों के सुरक्षा उपायों की भी निगरानी की।
समुद्री डकैती और हथियारबंद लूटमार के निवारण और दमन हेतु इन्होंने बढ़-चढ़कर कार्य किया। सोमालिया तटीय क्षेत्रों में मुख्यत: समुद्री डकैती का खतरा था और यह सुदूर लक्षद्वीप और मीनीकॉय क्षेत्रों तक फैल गया था। इन्हें समुद्र में अग्रसक्रिय सतत् निगरानी के लिए आईएसआरआर से बाह्य आधिकारिक नाम दिया गया था।
जहां तक समुद्रतटवर्तीय देशों के बीच अंतर्राराष्ट्रीय सहयोग का प्रश्न है अपने सरल स्वभाग और सहयोगात्मक गुणों के कारण इन्हें आज भी याद किया जाता है इनकेकरिश्माई गुणों के कारणभारत को एक राष्ट्र के रूप में प्रसिद्धि मिली है। इनकी विशिष्टताओं के कारण सभी अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत के हितों को सर्वोपरि रखना सुनिश्चित हो पाया।
ड्रग के खतरे से निपटने के लिए इन्होंने तटरक्षक बल को एक प्रभावी अभिकरण के रूप में अगुआई की। इनके कमान में भारतीय समुद्री इतिहास में गुजरात के सुदूर तटों पर भारी मात्रा में 1500 कि.ग्रा. हेरोइन जब्त किया गया जो 6400 करोड़ की कीमत की नारकोटिक्स थी।इस कार्रवाई से इनकी दिलेरी प्रमाणित हुई है।
इन्होंने जहाज के कमांडिंग ऑफिसर से लेकर कमांडर तक के विविध हैसियत में समुद्री खोज और बचाव अभियान की योजना बनाकर उसको अमली जामा पहनाया। इससे इन्हें मुद्दोंको परखने की समझमिली और खतरों के निवारण हेतु व्यावहारिक दृष्टिकोण से अवगत हुए। इन्होंने अपने कार्यकाल में अनुभव के आधार पर समुद्र में औसतन प्रत्येक एकांतरिक दिवस में तटरक्षक द्वारा एक जान बचाना सुनिश्चित किया।
वे तटरक्षक जहाजों पर अग्नि-शमन हेतु योजना और रणनीति विकसित की और समुद्र में गंभीर संकट में घिरे मरचेंट पोतों को बाह्य अग्नि-शमन सहायता प्रदान की। इन संसाधनों का प्रभावी ढंग से समुचित उपयोग कांडला में एमटी गणेश, श्रीलंका तट पर एमवी डैनियला और पश्चिम बंगाल में एमवी कोलकाता में अग्नि-शमन में सफल रहा। इस कार्य से देश की सराहना अंतर्राष्ट्रीय जगत में हुई और विशेषत: इस सेवा की प्रशंसा हुई।
इसके साथ ही, इनके आपदा प्रबंधन में विशेषज्ञता के कारण इनके सेवाकाल में प्रभावी निवारण और नीति द्वारा सुनामी, बाढ़ तथा भारत के पूर्वी और पश्चिमी तटों पर बहुतायत तूफानों यथा ओखी, हुदहुद, वायु, फानी आदि के समय जान-माल के नुकसान को न्यूनतम किया जा सका ।