भूस्खलन के परिणामस्वरूप होने वाली जान हानि को हम रोक सकते हैं तथा उससे निपटने के लिए अपने आपको तैयार कर सकते हैं। भारत सरकार ने ऐसे क्षेत्रों की पहचान के लिए योजनाएं बनाई हैं जहां भूस्खलन बार-बार आते हैं। इसे भूस्खलन खतरा क्षेत्र मानचित्र के माध्यम से हासिल किया जा सकता है जिनमें इलाकों को अलग-अलग रंग में दर्षाया गया है। लाल, पीला तथा हरा रंग हिमालय तटीय के पहाड़ी क्षेत्रों तथा रफ टैरेन में क्रमषः खतरनाक, सावधान तथा सुरक्षित क्षेत्र को दर्षाते हैं। एनडीएमए ने भूस्खलन तथा हिमस्खलन पर दिषानिर्देष प्रकाषित किए जिन्हें इसकी वेबसाइट पर डाला गया है। :
- नालों को साफ रखें,
- तूफान के जल को ढलानों वाली चट्टानों की सतह (स्लोप्स) से दूर रखें,
- नालों कों-कूड़ा, पत्ते, प्लास्टिक की थैलियां, मलबा आदि-के लिए जांचते रहें।
- रिसाव छिद्रों को खुला रखें
- पानी को बर्बाद न होने दें अथवा अपने मकान के ऊपर इकट्ठा कर लें।
- अधिक पेड़ों को उगाएं ताकि इसकी जड़ों के माध्यम से मिट्टी के कटाव को रोका जा सके।
- चट्टान गिरने वाले तथा झुकी हुई/धंसी हुई बिल्डिंग वाले, दरारों वाले हिस्सों की पहचान करें जो भूस्खलन का संकेत देते हैं तथा सुरक्षित स्थानों पर चले जाएं। अगर मटमैला/कीचड़ युक्त नदी का पानी हो तो यह भी ऊपर की ओर होने वाले भूस्खलन का संकेत देता है।
- ऐसे संकेतों को देखें तथा निकटतम जिला मुख्यालय से संपर्क करें।
- यह सुनिष्चित करें कि ढलान वाला क्षेत्र (स्लोप्स) का निचला हिस्सा टूटा हुआ न हो, सुरक्षित है, तब तक पेड़ों को न उखाड़े जब कि पुनः पेड़-पौधे लगाने (रिवेजीटेषन) की योजना न हो।